लंदन से लाए छत्रपति शिवाजी के बाघनख पर विवाद:इतिहासकार बोले- असली नहीं, रेप्लिका है; 205 साल पहले जेम्स ग्रांट इसे ले गए थे
ब्रिटेन के विक्टोरिया और अल्बर्ट (V&A) म्यूजियम से बुधवार (17 जुलाई) को छत्रपति शिवाजी का बाघनख हथियार मुंबई लाया गया। महाराष्ट्र के संस्कृति मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने इसकी पुष्टि की। उन्होंने कहा कि बाघनख को 19 जुलाई से सातारा के छत्रपति शिवाजी म्यूजियम में 7 महीने तक प्रदर्शनी में रखा जाएगा।
मुनगंटीवार ने पिछले हफ्ते विधानसभा में कहा था कि बाघनख का प्रयोग छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा किया जाता था। उनकी टिप्पणी एक इतिहासकार के दावे पर थी, जिसमें कहा गया है कि छत्रपति शिवाजी ने सन् 1659 में बीजापुर के सेनापति अफजल खान को बाघनख से मारा था। ये पहले से ही सतारा में था।
बाघनख के बारे में यह मशहूर है कि यह छत्रपति शिवाजी महाराज का था। 1659 की लड़ाई के दौरान शिवाजी महाराज इसे अपने हाथ में छुपाए हुए थे। इसी से उन्होंने अफजल खान की आंतें बाहर निकाल दी थीं।
क्या यही है शिवाजी का असली बाघनख?
सरकार दावा कर रही है कि शिवाजी ने अफजल खान को इसी बाघनख से मारा था। वहीं, दूसरी ओर एक वर्ग इस बात से सहमत नहीं है। इन्हीं से एक हैं मराठी इतिहासकार इंद्रजीत सावंत। मराठा इतिहास के गहन अध्येता इंद्रजीत सावंत ने शिवाजी महाराज पर गहन शोध किया है। इसी के चलते ‘दिव्य भास्कर’ ने इस बाघनख को लेकर इंद्रजीत सावंत से खास बातचीत की और पर्दे के पीछे का सच जानने की कोशिश की।
ये बाघनख तो एक रेप्लिका है: सावंत
बाघनख के विवाद पर इतिहासकार इंद्रजीत सावंत कहते हैं- ‘देखिए, मैं आपको बता रहा हूं कि सच नहीं बदल जा सकता। जब हम इतिहास पढ़ते हैं तो मूल यानी प्राथमिक दस्तावेज-साक्ष्य अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। महाराष्ट्र सरकार सतारा में जो बाघनख लेकर आई है, उसके बारे में उपलब्ध सभी दस्तावेज बताते हैं कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने अफजल खान को इस बाघ से नहीं मारा था। ये बाघनख ब्रिटेन से लाई गई रेप्लिका है।
‘वाघनख: एक अध्ययन’
इंद्रजीत सावंत ने 2010 में ‘वाघनख: एक अध्ययन’ शीर्षक से एक निबंध लिखा था। इसमें उन्होंने संदर्भों के साथ यह साफ किया था कि असली बाघ सातारा छत्रपति के पास था। इंद्रजीत सावंत के मुताबिक, यह बाघ 1971 में ब्रिटेन के विक्टोरिया अल्बर्ट म्यूजियम पहुंचा था। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि यह वाघनख वही है, जिसका इस्तेमाल शिवाजी महाराज ने अफजल खान को मारने के लिए किया था। संग्रहालय ने स्वयं नोट किया है कि इस बात पर असहमति है कि बाघ शिवाजी महाराज का है या नहीं। विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय में कुल छह बाघनख हैं। मद्रास, वडोदरा और ब्रिटेन सहित संग्रहालयों में जहां बाघनख संरक्षित हैं, वे सभी दावा करते हैं कि ये बाघ शिवाजी महाराज के हैं।
बाघनख लंदन कैसे पहुंचा?
इस सवाल के जवाब में इंद्रजीत सावंत कहते हैं- दस्तावेज़ हमेशा सच्ची और सही कहानी दिखाते हैं। वर्ष 1818 में प्रताप सिंह भोंसले सतारा की गद्दी पर बैठे। छत्रपति प्रतापसिंह को सत्वधीर प्रतापसिंह महाराज कहा जाता है। प्रताप सिंह को पेशवा बाजीराव द्वितीय ने कैद कर लिया था। मराठा-अंग्रेजी संघर्ष में पेशवा बाजीराव द्वितीय की हार हुई। माउंट स्टुअर्ट एलफिंस्टन, जो बॉम्बे प्रेसीडेंसी के गवर्नर थे, ने प्रताप सिंह महाराज को बचाया और उन्हें सतारा के सिंहासन पर बहाल किया। माउंट स्टुअर्ट एलफिंस्टन ने उसे सीमित अधिकारों के साथ सिंहासन पर बहाल कर दिया, जबकि सत्ता का मूल रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रखा।
इंद्रजीत सावंत कहते हैं, ‘1826 में जब एलफिंस्टन ब्रिटेन लौट रहे थे तो उन्होंने प्रताप सिंह महाराज से मुलाकात की। प्रताप सिंह महाराज ने उन्हें एक बाघनख दिया था। जबकि यह बाघनख वह नहीं था, जिसने अफजल खान को मारा, बल्कि उसके जैसा ही एक और रेप्लिका था।
इंद्रजीत सावंत आगे कहते हैं- यह बात खुद माउंट स्टुअर्ट एलफिंस्टन ने एक पत्र में दर्ज की है। पत्र में एलफिंस्टन ने स्पष्ट रूप से लिखा है कि मैंने असली बाघनख देखा है और मुझे उपहार के रूप में बिल्कुल वैसा ही बाघनख मिला है। नोट में लिखा है कि एलफिंस्टन को उपहार में दिया गया बाघनख अब जेम्स ग्रांट डफ के बेटे लॉर्ड माउंट स्टीवर्ट एलफिंस्टन ग्रांट डफ के कब्जे में हैं।
बाघनख को महाराष्ट्र लाया जाना एक प्रेरणादायक क्षण
राज्य के आबकारी मंत्री शंभुराज देसाई 16 जुलाई को कहा था कि बाघनख को महाराष्ट्र लाया जाना एक प्रेरणादायक क्षण है। नख का सतारा में भव्य स्वागत किया जाएगा। इसे कड़ी सुरक्षा के बीच लाया गया है और बुलेटप्रूफ कवर रखा गया है। देसाई सतारा के संरक्षक मंत्री भी हैं। उन्होंने छत्रपति शिवाजी म्यूजियम का दौरा भी किया है।
देसाई ने कहा कि पहले लंदन के म्यूजियम ने पहले एक साल के लिए नख भारत भेजने पर सहमति जताई थी, लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने नख को 3 साल के लिए राज्य में प्रदर्शन के लिए सौंपने के लिए राजी किया। उन्होंने कहा कि काफी प्रयासों के बाद CM एकनाथ शिंदे की सरकार के सफल प्रयासों के चलते बाघनख को महाराष्ट्र लाया गया।
V&A म्यूजियम में बाघनख से जुड़ी ये बातें लिखी हैं…
म्यूजियम के बोर्ड में लिखा है- शिवाजी का बाघनख जिसके साथ उन्होंने मुगल सेना के जनरल को मार डाला। इसे ईडन के जेम्स ग्रांट-डफ को तब दिया गया था, जब वह मराठों के पेशवा के प्रधानमंत्री के तहत सातारा में रहते थे। एक और डिस्क्रिप्शन में यह भी लिखा गया है कि मराठों के अंतिम पेशवा (प्रधानमंत्री) बाजी राव द्वितीय ने तीसरे अंग्रेज-मराठा युद्ध में हार के बाद जून 1818 में अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। उन्हें कानपुर के पास बिठूर में भेज दिया गया। संभव है कि उन्होंने यह हथियार ग्रांट डफ को सौंप दिया हो। यह सत्यापित करना संभव नहीं है कि ये बाघ के पंजे वही हैं जिनका इस्तेमाल शिवाजी ने लगभग 160 साल पहले किया था।
पहले 10 नवंबर को बाघनख भारत लाने की तैयारी थी
महाराष्ट्र के सांस्कृतिक मामलों के मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने पिछले साल कहा था कि हम हिंदू कैलेंडर के आधार पर उस ऐतिहासिक घटना की सालगिरह के साथ इसे वापस लाने की संभावना तलाश रहे हैं, जब शिवाजी ने अफजल खान को मारा था। उन्होंने कहा था कि अफजल खान की हत्या की सालगिरह ग्रेगोरियन कैलेंडर में 10 नवंबर को पड़ती है। इसलिए हम सावधानी पूर्वक हिंदू तिथि कैलेंडर के आधार पर तारीखों का समन्वय कर रहे हैं।
बाघनख पर शिवसेना और BJP आमने-सामने थी
संजय राउत ने कहा था- शिवाजी का असली बाघनख शिवसेना: यह बाघनख का अपमान है। शिवाजी की असली बाघनख तो शिवसेना है। यह हथियार तीन साल के लिए भारत आ रहा है। आप उस हथियार को लाकर क्या करेंगे, जिसका इस्तेमाल महाराष्ट्र के स्वाभिमान और अखंडता की रक्षा के लिए किया गया था? आपने तो राज्य को दिल्ली का गुलाम बना दिया है।
आदित्य ठाकरे ने कहा था- बाघनख यहीं रहेगा या उधार लिया है: महाराष्ट्र लाया जा रहा बाघनख यहीं रहेगा या उधार लिया गया है। और क्या शिवाजी महाराज का ही था या केवल उस समय का है।
देवेंद्र फडणवीस ने कहा था- अपमानजनक सवाल पूछना शिवसेना का इतिहास रहा: बाघनख की प्रामाणिकता पर शिवसेना (UBT) के आदित्य ठाकरे के सवाल बचकाने और जवाब देने लायक नहीं। शिवसेना का इस तरह के अपमानजनक सवाल पूछने का इतिहास रहा है।