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चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई:हलफनामे में सरकार ने कहा था- सिलेक्शन कमेटी में ज्यूडिशियल मेंबर का होना जरूरी नहीं

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चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर 

15 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने जया ठाकुर की याचिका को सुनवाई 21 मार्च के लिए लिस्ट किया था।

सुप्रीम कोर्ट आज चुनाव आयोग में नियुक्ति से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हो गई है। 2023 के नए कानून के तहत होने वाली आयुक्तों की नियुक्तियों को चुनौती दी गई थी। नए कानून के तहत CJI को चयन पैनल से बाहर करने पर आपत्ति जताई गई है।

मामला जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच में है। याचिकाकर्ताओं की तरफ से प्रशांत भूषण दलीले रख रहे हैं। इससे पहले केंद्र सरकार ने बुधवार 20 मार्च को हलफनामा दायर किया है।

सरकार ने कहा है कि ये दलील गलत है कि किसी संवैधानिक संस्था की स्वतंत्रता तभी होगी, जब सिलेक्शन पैनल में कोई ज्यूडिशियल मेंबर जुड़े। इलेक्शन कमीशन एक स्वतंत्र संस्था है।

याचिका कांग्रेस कार्यकर्ता जया ठाकुर और NGO एशियन डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी को सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।

पूर्व चुनाव आयुक्त अरुण गोयल के इस्तीफे और अनूप पांडे के रिटायरमेंट के बाद नए कानून के अनुसार 2 नए चुनाव आयुक्तों ज्ञानेश कुमार-सुखबीर संधु की नियुक्ति 14 मार्च को हुई है।

CEC राजीव कुमार के साथ नवनियुक्त चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार और सुखबीर संधु।

कोर्ट रूम लाइव…

भूषण- 14 मार्च को सर्च कमेटी की दूसरी बैठक हुई। 6 नाम शॉर्टलिस्ट किए गए। 14 मार्च को चयन समिति की बैठक हो गई। उन्हें पता था कि 15 मार्च को यहां कोर्ट आने वाली है।

भूषण- विपक्ष के नेता का कहना है कि मुझे 10 मिनट पहले शॉर्टलिस्ट किए गए नाम दिए गए थे। इससे पहले उन्होंने मुझे 200 नाम भेजे थे। हमारे आवेदन को निरर्थक बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया था।

जस्टिस खन्ना- आपने देखा कि हमने पहले निषेधाज्ञा क्यों नहीं दी? इस अदालत की शुरुआत से लेकर फैसले तक, राष्ट्रपति नियुक्तियां कर रहे थे। प्रक्रिया काम कर रही थी।

प्रशांत भूषण- अनूप बरनवाल ने कहा है कि यदि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति कार्यपालिका करती है, तो यह गंभीर खतरा है।

बेंच- चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष होना होगा। इस कानून से पहले संविधान ने क्या परिकल्पना की थी?

भूषण- एक खालीपन था। संविधान सभा को उम्मीद थी कि इसे स्वतंत्र पैनल के जरिए भरा जाएगा, न कि कार्यपालिका के प्रभुत्व वाले।

जस्टिस दत्ता- मान लीजिए कि अनूप बरनवाल नहीं हैं और संसद यह कानून लेकर आई, तो चुनौती का आधार क्या होगा?

प्रशांत भूषण- वही, स्वतंत्रता ही इस चुनौती का आधार रहेगी।

जस्टिस खन्ना- यह फैसला इसलिए पारित किया गया क्योंकि कोई कानून नहीं होने के कारण शून्यता थी और इस फैसले ने एक कानून बनाने पर जोर दिया। हम कानून की संवैधानिकता पर विचार किए बिना उस पर रोक नहीं लगा सकते। अब जब उन्हें नियुक्त किया गया है, और चुनाव नजदीक हैं, तो सुविधा के संतुलन पर विचार करना होगा, क्योंकि नियुक्त व्यक्तियों के खिलाफ कोई आरोप नहीं हैं।

भूषण- मैं यह नहीं कह रहा हूं कि एक आयुक्त के साथ चुनाव कराएं। उन्हें तब तक काम करने दें जब तक उनका रिप्लेसमेंट नहीं आ जाता।

सुप्रीम कोर्ट- संविधान पीठ के फैसले में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि चयन समिति में कौन सदस्य होना चाहिए। आप यह नहीं कह सकते कि चुनाव आयोग कार्यपालिका के अधीन है। हम जांच करेंगे, लेकिन इस स्तर पर हम कानून पर रोक नहीं लगा सकते।

भूषण- कोर्ट ने पहले भी कई कानूनों पर रोक लगा दी है।

सुप्रीम कोर्ट- वे अपवाद थे। यहां यह इतना आसान नहीं है। हम यह नहीं कह सकते कि आप इसमें कामयाब होंगे।

एडवोकेट शंकरनारायणन- फैसले का पैरा 301 देखें। कोर्ट ने कहा कि जो भी कानून बनाया जाएगा वह अलग होगा। यह अनुच्छेद 324 की व्याख्या है। वे संविधान में संशोधन करके ही इससे छुटकारा पा सकते थे।

सुप्रीम कोर्ट- फैसले में कहा गया है कि एक शून्य था और अदालत ने कभी नहीं कहा कि हम संसद को एक विशेष तरीके से कानून बनाने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं।

एडवोकेट शंकरनारायणन- कम से कम धारा 7 पर रोक लगाएं क्योंकि वे नियुक्तियां करना जारी रखेंगे।

एडवोकेट विकास सिंह- जरूरी नहीं कि तीसरा व्यक्ति CJI हो, लेकिन CJI जैसे विश्वसनीय व्यक्ति को लाया जाना चाहिए था। चुनाव नजदीक हैं, लोकतंत्र खतरे में है। CJI एक समिति बना सकते हैं जो नियुक्तियों की जांच करे। अगर वे ऐसा करते हैं, तो वे इसे जारी रख सकते हैं।

एडवोकेट संजय पारिख- खालीपन है और उसे भरना होगा। संसद को यह करना होगा। लेकिन संविधान पीठ की पूरी कवायद यह देखने के लिए थी कि लोकतंत्र को कैसे बचाया जा सकता है। फैसले में “कार्यपालिका की विशेष शक्ति छीनने” का उल्लेख है। सीजेआई को सुझाव देने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। ऐसा न होना लोकतांत्रिक प्रक्रिया को समाप्त कर देगा।

एसजी तुषार मेहता- चुनाव आयुक्त को नियुक्ति प्रक्रिया फरवरी में शुरू हुई। अधिनियम लागू होने के तुरंत बाद।

सुप्रीम कोर्ट- इसके 2 पहलू हैं- पहला अधिनियम औ इसकी संवैधानिक वैधता, दूसरा- अपनाई गई प्रक्रिया। प्रक्रिया अलग मुद्दा है। लेकिन आपको नामों की जांच करने का अवसर देना था।

SG मेहता- सभी 200 नाम समिति के सभी सदस्यों के पास जाते हैं। वे कहते हैं कि हमने प्रक्रिया तेज कर दी है। यह प्रक्रिया फरवरी में शुरू हुई थी। हमारे पास केवल 2 व्यक्ति थे।

सुप्रीम कोर्ट- आपको अधिक धीरे-धीरे जाना चाहिए था। सर्च कमेटी को पहले एक्टिव होना था। एक को चुनने के लिए 15 मार्च को मीटिंग थी, दूसरे को चुनने के लिए आपने 14 मार्च को बैठक कर ली?

जस्टिस दत्ता- 1 पोस्ट के लिए 5 नाम हैं। 2 के लिए आपने केवल 6 भेजे, 10 क्यों नहीं? हमारे पास चुनाव आयोग के रिकॉर्ड से तो यही पता चलता है। वे 200 नामों पर विचार कर सकते हैं, लेकिन समय कितना दिया गया है? शायद 2 घंटे? 2 घंटे में 200 नामों पर होगा विचार? आप पारदर्शी हो सकते थे।

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