बेंजो, मेरे साथ चलो। यही हुक्म कमांडिंग ऑफिसर विंग कमांडर अवतार सिंह ने उस वक्त मुझे दिया था। श्रीनगर आने से पहले मैं पंजाब में आदमपुर बेस पर था। वहां एक दिन मुझे एटीसी ने बताया कि उड़ान की परमिशन नहीं है, तभी मुझे लगा कि माजरा कुछ और है।
सीओ ने भी संक्षिप्त सी जानकारी दी- ‘एक ब्रीफिंग के लिए चलना है’। हम जीप में सवार हुए। विंग कमांडर ने जीप रनवे के किनारे रोकी और वहां पूरी रफ्तार से घूमते ब्लेड वाले हेलीकॉप्टर में सवार होने को कहा। यह मेरे लिए अजीब बात थी। हेलीकॉप्टर की चिंघाड़ के बीच मुझे कॉकपिट में जाने का इशारा किया गया।
-कहा गया- चीफ आपसे मिलना चाहते हैं।
– मैंने अचकचाकर पूछा- कौन चीफ?
-जवाब मिला, चीफ ऑफ एयर स्टाफ।
-कॉकपिट में गया तो ओवरऑल में चीफ बैठे दिखे। उन्होंने कोई रैंक नहीं पहना था। पायलट सीट पर विंग कमांडर सिन्हा थे।
-वायुसेना प्रमुख एवाई टिपणिस से मेरा पहली बार आमना-सामना हो रहा था। हेलीकॉप्टर उड़ान भर चुका था और हम एक बर्फानी समंदर के ऊपर थे।
-इस दौरान मुझे पता चला कि हम पाकिस्तानी फौज के उन घुसपैठियों के खिलाफ ऑपरेशन शुरू करने जा रहे हैं, जिन्होंने पीठ में छुरा घोंप कर उन चोटियों पर कब्जा जमा लिया है, जिन्हें हर सर्दियों में दोनों देश खाली कर देते थे।
– एयर चीफ ने पूछा- मिशन के लिए तैयार हो ना।
– ‘यस सर’, मेरे जवाब से उन्हें गर्व महसूस हुआ।
-उन्होंने कहा- ‘ठीक है, कल से आपको ऑपरेशन की पूरी जानकारी मिल जाएगी।’
– इसके अगले दिन शुरू हुआ- ऑपरेशन सफेद सागर। पहला टारगेट टाइगर हिल थी। वायु सेना के लिए 1971 के बाद पहला मौका था, जब लाइव बम बरसाने थे। हमें बड़े टारगेट्स ध्वस्त करने की ट्रेनिंग थी। -लेकिन, यहां तो ऊंची-ऊंची चोटियों पर बहुत छोटे से इलाके में घुसपैठिए बैठे थे। हमने खुद को इसके लिए ढाल लिया।
– हजार टन के बम फाइटर जेट्स की वैली में लगाए गए। तभी कुछ वायु योद्धाओं ने एक तरकीब सुझाई… क्यों न पाकिस्तानियों पर खास पैगाम लिखे बम गिराए जाएं। आइडिया क्लिक कर गया।
-बमों पर बेहद क्रिएटिव नारे लिखे गए। वह फोटो आज भी मेरे ड्राइंग रूम में टंगा है जिसमें मैं उस फाइटर के पास खड़ा हूं, जिसके नीचे लगे बम पर लिखा था- जोर का झटका धीरे से लगे।
-ऐसे कई पैगाम लिखे गए। एक बम पर लिखा था- फॉर इमरान फ्रॉम जीनत। एक था- फॉर नवाज विद लॉट्स ऑफ आवाज। जबकि तीसरे पर लिख रखा था- सिक्सर फ्रॉम सचिन फॉर अकरम।
-ये पैगाम आज भी जेहन में हैं। विजय दिवस के एक मौके पर द्रास गया था। सामने तोलोलिंग की चोटी थी। तिरंगा लहरा रहा था। सीना गर्व से फूल रहा था। कभी मैं चोटी को देखता कभी लहराते हुए तिरंगे को…। -और फिर से ऑपरेशन सफेद सागर की सारी यादें कौंध गई थीं।