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दोनों दीन से गए पांडे……

●रवि उपाध्याय

जब बुरे दिन आते हैं तो भैया, गति और मति दोनों सटक जाती है। ऊंट की पीठ पर बैठे आदमी को भी कुत्ता काट लेता है। दोनों को पाने के चक्कर में आदमी के हाथ झुन झुना ही रह जाता है। कहावत है कि आधी छोड़ पूरी को धावे, आधी मिले न पूरी पावे । ऐसी ही कहावत है ‘दोनों दीन से गए पांडे- हलुआ मिले ना मांडे। जिन के माइंड में धर्म निरपेक्षता कुलांचे मारती है उनके लिए एक और धर्म निरपेक्ष कहावत है – न तो खुदा ही मिले ना विसाले सनम, न इधर के रहे ना उधर के रहे।

कुछ ऐसा ही हाल इन दिनों अंग्रेजों के जमाने में बनी देश के सबसे पुराने सियासी पार्टी का है। सूझ ही नहीं रहा है कि कैसे-कैसे ऐसे -ऐसे हो गए।

इसी सिलसिले में एक कथा सुनिए एक राजा के पास ये शिकायत पहुंची की उनके राज्य का एक व्यापारी टेक्स की चोरी कर राजकोष को नुकसान पहुंचा रहा है। राजा ने फरमान सुनाया व्यापारी को पेश किया जाए। उसे राजा के सामने पेश किया गया। व्यापारी राजा का परिचित था। राजा ने व्यापारी से कहा तुमने कर की चोरी कर गंभीर अपराध किया है, तुम्हे सज़ा तो जरूर मिलेगी, परंतु हमारे परिचित होने के नाते तुम्हे सजा चुनने की हम सुविधा देंगे। तुम्हारी सजा यह है कि या तो तुम्हें दण्ड स्वरूप 5 हजार रुपये सरकारी कोष में जमा करना होगा या बिना रुके एक साथ 5 किलो प्याज खानी होगी अथवा 20 कोड़े खाना होगा।

व्यापारी ने सोचा कि जुर्माना देने और कोड़े खाने की सजा से बेहतर है कि प्याज खाई जाए, पेट में कुछ तो जाएगा। उसने अपना फैसला सुना दिया। उसे खाने को प्याज दी गई। थोड़ी प्याज खाने पर उसे उल्टी आने लगी, उबके आने लगे। व्यापारी ने राजा से कहा कि वो ऐसा करने में असमर्थ है और विकल्प के रूप में कोड़े खाने को तैयार है। 5 -7 कोड़े खाने के बाद व्यापारी की हालत खराब हो गई। बदन से खून निकलने लगा। वह राजा से हाथ जोड़कर बोला हुजूर कोड़े की सजा रोक दें मैं आर्थिक दंड देने को तैयार हूं। इस तरह व्यापारी ने 5 रुपए अर्थ दण्ड चुका कर अपनी जान छुड़ाई। पर अपनी होशियारी में उसे तीनों सजा एक साथ भुगतना पड़ा।

यही सजा इन दिनों एक पार्टी और उसके नेता भुगत रहे हैं। कहते हैं, मंदिर का ताला हमने खुलवाया, भूमिपूजन हमने कराया पर जनता है कि मान ही नहीं रही है। मति ऐसी फिरी की पहले कहा माई लॉड राम थे इच नहीं। जनता ने तीसरी गठान बांध ली। खैर शरमा शरमी प्राण प्रतिष्ठा का न्योता मिला उलटी दिशा में दौड़ लिए । बोले हम थाली वाले के लिए ताली बजाने थोड़े ही बजाएंगे। यह भूल गए जनता ने यदि तीसरी बजा दी तो फिर बोल मजूरों हल्ला बोल करना पड़ेगा। कहते हैं न्योता के दिन नहीं,जब मर्जी होगी तो आएंगे। भैया फिर क्या जूठी पत्तलें गिनने जाओगे। अभी जाते तो पुराने दोष सरयू में धुल जाते।
लोग तुम्हारी भी वाह- वाह करते कि फूफा भले ही रूठे हुई हैं, आएं तो सईँ । राम जी भी भक्त वत्सल हैं वे भी माफ कर देते।अरे भैया रावण को भी माफ करों थों कि नाही? पर क्या करें एक फिल्मी भजन याद आ रहा है ‘ कोई लाख करे चतुराई रे, करम का भेद, मिटे ना मेरे भाई।

भैया,अब नहीं जाना तो मत जाओ, अपने संगी-साथियों समेत और गत बनवाओ। अब होइए वही जो राम रची राखा…।

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