तारीख थी 12 फरवरी। सुबह के करीब 10 बजे तेजस्वी यादव अपने आवास से विधानसभा के लिए निकलते हैं। इसके ठीक 2 मिनट बाद CM नीतीश कुमार का काफिला भी उसी राह पर चल पड़ा। ये दिन था सरकार के फ्लोर टेस्ट का, जिसमें खेला होने की संभावनाएं जताई जा रही थीं। ऐसा इसलिए कि फ्लोर टेस्ट से पहले तक जदयू-भाजपा के तीन-तीन विधायकों का मोबाइल फोन स्विच ऑफ था। यहां सबके मन में केवल यही सवाल था कि आखिरकार ऐसा क्या हुआ, जो ये विधायक अपनी ही सरकार की फजीहत कराने पर आमादा हैं।
इस सवाल के जवाब में एक नहीं, बल्कि कई कारण सामने आए। इन विधायकों की नाराजगी अपनी-अपनी पार्टियों से कई दिनों से थी, लेकिन उसे जताने का सही मौका नहीं मिल रहा था। कुछ को मंत्री पद की महत्वाकांक्षाएं थी, जो पूरी नहीं हो रही थीं। ऐसे में अपनी सीनियर लीडरशिप को खुद की अहमियत का स्ट्रांग मैसेज देना था, जिसका मौका उन्हें फ्लोर टेस्ट के रूप में मिला।
इसे कोई खोना नहीं चाहता था। हालांकि, जब राजद के 3 विधायकों ने अचानक से पाला बदला और फ्लोर टेस्ट के लिए NDA सरकार कंफर्टेबल हो गई तब इन नाराज विधायकों ने भी तुरंत मौके की नजाकत भांप ली और आनन-फानन में विधानसभा पहुंचकर सरकार के पक्ष में वोटिंग कर दी।
विधानसभा में लेट पहुंचने और फोन स्विच ऑफ करने के पीछे इन सभी की अपनी कहानी और कारण थे, जिसे उन्होंने मीडिया के जरिए बयां भी किया।
हालांकि, तब तक काफी देर हो चुकी थी। जदयू और भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी असल माजरा समझ चुका था। ऐसे में अब इन विधायकों का क्या होगा? ये तो इनकी पार्टियां ही तय करेंगी, लेकिन इन्हें ये सब करने की जरूरत क्यों पड़ी, उन सभी वजहों को जानने के लिए पढ़ें यह स्पेशल रिपोर्ट।