वर्ष 1990 में राम रथ यात्रा शुरू करने वाले लाल कृष्ण आडवाणी ने रामजन्म भूमि आन्दोलन को याद करते हुए कहा है कि राम जन्मभूमि आंदोलन का प्राथमिक उद्देश्य अयोध्या में श्री राममंदिर का पुनर्निर्माण था और यह ‘छद्म धर्मनिरपेक्षता के हमले का शिकार हुई धर्मनिरपेक्षता के वास्तविक अर्थ को पुन: स्थापित करने का प्रतीक भी बन गया। आडवाणी द्वारा लिखे उनके कार्यालय द्वारा साझा किए गए लेख ‘श्रीराम मंदिर: ‘एक दिव्य स्वप्न की पूर्ति’ में भाजपा नेता ने कहा कि आंदोलन के दौरान वास्तविक धर्मनिरपेक्षता और छद्म धर्मनिरपेक्षता के बीच अंतर को लेकर देश में एक महत्वपूर्ण बहस शुरू हो गई।
आडवाणी ने कहा, ‘एक ओर, आंदोलन को व्यापक जन समर्थन प्राप्त था, वहीं, अधिकांश राजनीतिक दल इस आंदोलन का समर्थन करने से इसलिए कतरा रहे थे, क्योंकि उन्हें मुस्लिम वोट खोने का डर था। वे वोट-बैंक की राजनीति के लालच में फंस गए और अपने कृत्य को धर्मनिरपेक्षता के नाम पर उचित ठहराने लगे। वयोवृद्ध नेता आडवाणी ने लिखा है कि आगामी 22 जनवरी के विशेष अवसर से पहले पूरे देश का वातावरण सचमुच राममय हो गया है। न केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के एक गौरवान्वित सदस्य के रूप में, बल्कि हमारी गौरवशाली मातृभूमि के एक गर्वित नागरिक के रूप में भी यह उनके लिए संतुष्टि का क्षण है। उन्होंने कहा कि वह धन्य हैं कि अपने जीवनकाल में इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बन रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अयोध्या में श्रीरामलला के विग्रह की ‘प्राण प्रतिष्ठा’ करेंगे, तो वह हमारे महान भारत के प्रत्येक नागरिक का प्रतिनिधित्व करेंगे।
उन्होंने कहा कि यह मेरा अटल विश्वास है और मेरी आशा भी कि यह मंदिर सभी भारतीयों को श्रीराम के गुणों को अपनाने के लिए प्रेरित करेगा। मैं यह भी प्रार्थना करता हूं कि हमारा महान देश न केवल वैश्विक शक्ति बनने के पथ पर तेजी से आगे बढ़ता रहे बल्कि जीवन के सभी क्षेत्रों में अपने आप को गरिमा और मर्यादा के एक उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करे। उन्होंने कहा कि एक तरफ, जहां लंबी कानूनी लड़ाई चल रही थी, वहीं दूसरी तरफ, न केवल वह, बल्कि भाजपा और संघ परिवार का प्रत्येक कार्यकर्ता भारतीयों की आत्मा को जागृत करने के कार्य में जुटा रहा ताकि रामलला को अपने वास्तविक निवासस्थान पर विराजमान करने का सपना साकार हो सके।
उन्होंने कहा कि अब जब भव्य श्रीराम मंदिर अपने निर्माण के अंतिम चरण में है, तो वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार, सभी संगठनों, विशेष रूप से विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी, रथ यात्रा के अनगिनत सहयोगियों, संतों, नेताओं, कारसेवकों और भारत तथा विश्व के सभी लोगों के प्रति गहरी कृतज्ञता की भावना से भर गए हैं, जिन्होंने कई दशकों तक अयोध्या आंदोलन में बहुमूल्य योगदान और बलिदान दिया।
‘राष्ट्र धर्म’ पत्रिका में अपने लेख राम मंदिर निर्माण एक ‘दिव्य स्वप्न की पूर्ति’ में 96 वर्षीय लाल कृष्ण आडवाणी ने 33 वर्ष पूर्व निकाली रथ यात्रा को याद करते हुए लिखा कि उनका मानना है कि अयोध्या आंदोलन उनकी राजनीतिक यात्रा में ‘सबसे निर्णायक और परिवर्तनकारी घटना’ थी जिसने उन्हें ‘भारत को फिर से खोजने और इस प्रक्रिया में खुद को फिर से ’समझने का मौका दिया। राम मंदिर आंदोलन में सबसे आगे रहे भाजपा के कद्दावर नेता ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी याद करते हुए कहा कि उन्हें अयोध्या में राम मंदिर के भव्य प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से पहले उनकी कमी खल रही है। एक अपने लेख में आडवाणी ने उल्लेख किया है कि मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पूरी रथ यात्रा के दौरान उनके साथ थे।
सूत्र के मुताबिक आडवाणी ने कहा कि तब वह बहुत प्रसिद्ध नहीं थे। लेकिन उसी समय भगवान राम ने अपने मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए अपने भक्त (मोदी) को चुना था।’ अडवाणी ने कहा, ‘उस समय मुझे लगा कि नियति ने तय कर लिया है कि एक दिन अयोध्या में श्री राम का भव्य मंदिर जरूर बनेगा।’ उन्होंने कहा, ‘खैर, अब यह केवल समय की बात है।’
उन्होंने कहा, ‘रथ यात्रा के दौरान, कई अनुभव हुए जिन्होंने मेरे जीवन को प्रभावित किया। दूर- दराज के गांवों से अज्ञात लोग रथ को देखने के बाद भावना से अभिभूत होकर मेरे पास आते थे। वे प्रणाम करते थे, भगवान राम के नाम का जप करते थे और चले जाते थे।’
उन्होंने कहा, ‘यह एक संदेश था कि ऐसे कई लोग थे जिन्होंने राम मंदिर का सपना देखा था… 22 जनवरी को मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के साथ, उन ग्रामीणों की दबी हुई इच्छाएं भी पूरी हो जाएंगी।
रथ यात्रा को लेकर आडवाणी अपनी पुस्तक ‘मार्ई कंट्री माई लाइफ’ में लिखते हैं एक शाम मैैं और कमला घर में बैठे थे कि प्रमोद महाजन भाजपा के चार महासचिवों में से एक थे। वह आए और बताने लगे कि विश्व हिन्दू परिषद कैसे कार सेवा कार्यक्रम को अंजाम देगी। तब मैंने प्रमोद महाजन को कहा कि मैं पद् यात्रा की योजना बना रहा हूं। जो सोमनाथ से शुरू होकर अयोध्या में समाप्त होगी। प्रमोद महाजन ने यात्रा के प्रभाव व दिनों का हिसाब किताब कर यह सुझाव दिया कि यात्रा का एक सीमित लाभ होगा। कार द्वारा या जीप द्वारा यात्रा करनी चाहिए। मैंने कहा कि इस से जन साधारण से सम्पर्क व संवाद नहीं हो पाएगा। प्रमोद महाजन ने विकल्प के रूप में रथ यात्रा का सुझाव देते हुए कहा कि यह राम मंदिर के लिए है। एक मिनी बस या ट्रक लेकर उसे नया आकार देकर यात्रा शुरू की जा सकती है।
25 सितंबर को जब सोमनाथ मंदिर से रथ यात्रा शुरू हुई थी तो उस समय मेरे साथ प्रमोद महाजन और नरेन्द्र मोदी थे। इनके अलावा मेरा परिवार व विजय राजे सिंधिया और सिकंदर बख्त थे। बहुत बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे और नारे लग रहे थे-जय श्री राम सौंगध राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे। प्रमोद महाजन ने मुझे कहा गुजरात के लोग धार्मिक हैं इसलिए भीड़ अधिक है, आगे के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।
रथ यात्रा जैसे-जैसे गुजरात से महाराष्ट्र और उसके बाद अन्य प्रदेशों में गई वहां लोगों की मौजूदगी और उत्साह ने प्रमोद महाजन को गलत साबित कर दिया। मुझे भी एहसास हुआ कि मैं तो केवल सारथी हूं एक निमित्त मात्र लोगों की अयोध्या और राम के प्रति आस्था का ही परिणाम है।
श्री राम जन्मभूमि आन्दोलन को लेकर शुरू हुए रथ यात्रा के प्यार लालकृष्ण आडवाणी और उस यात्रा के उनके सहयोगी रहे स्वर्गीय प्रमोद महाजन और नरेन्द्र मोदी वर्तमान में भारत के प्रधानमंत्री तथा यात्रा से संबंधित सभी लोगों का देशवासी विशेषतय हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले राम भक्त हमेशा इन लोगों के ऋणी रहेंगे। जिन लोगों ने राम मंदिर जन्मभूमि को लेकर चले आन्दोलन में अपना बलिदान दिया उनका नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। अयोध्या आन्दोलन के परिणाम स्वरूप 22 जनवरी को होने वाले प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम के साथ ही सदियों की मानसिक गुलामी की बेडिय़ां भी टूटेंगी। प्रत्येक भारतीय को अपने गौरवमय अतीत के साथ जुड़ कर तथा सांस्कृतिक दृष्टि से मजबूत भारत जिसकी नींव राम मंदिर की मर्यादाओं पर टिकी हो उसके लिए कार्य करने का संकल्प लेना चाहिए। यही समय की मांग है।